The last 2 decades have witnessed an increased use of digital devices due to major advancements in information technology. These advancements have harmed adversely, the most important buddy in our body - The Eye.
Devices like desktop and laptop computers, televisions, e-readers, smartphones, tablets, gaming gadgets have impacted our eyes massively which causes digital eye strain. This is a temporary discomfort to eyes that generally follow 2 or more hours of digital device use as people tend to switch between such devices repeatedly or use one for longer periods.
There are many causes due to which we get discomfort & digital strain there is no single event or behavior, some of them are:
We can start this by giving attention to our body; any kind of eye, back, neck, or shoulder pain should not be ignored as they are the signs of digital eye strain. The best way of preventing DES (Digital eye strain) is to limit the use of digital devices. It is easier said than done, as, it is difficult to do so in the digital era. But if we follow the below-given tips we can certainly lessen our eye strain to a large extent:-
1.) Keep the right distance - One should position the digital device on a sufficient distance like for computers, extend your arm and place your palm on the flat monitor screen, while seated in front of the computer. For handheld devices, hold the device just below eye level and at a distance that still enables you to comfortably read the screen.
2.) Keep the background light cool – We must adjust the brightness and color of the screens to reduce the glares that cause the maximum strain. This can be done by checking the device’s control settings. The background color must be changed from bright white to a cooler gray. Glare reduction filters may be used for computer screens.
3.) Always use a clean screen - Always keep the screens of your devices clean. A smudge-free, dust-free screen certainly helps reduce glare.
4.) Dim surrounding lights - To prevent strain, one must reduce the amount of light competing with your device’s screen. When inside the competing lights may be dimmed, and for outdoors, try to avoid competing with direct sunlight while using your digital device. Doing so will help reduce glare and eye strain.
5.) Adjust the angle of the screen - Digital screens should always be kept directly in front of your face and slightly below eye level, irrespective of what type of device you’re using.
6.) Increase text size to medium if not large - Increasing the text size of your device while reading will make your eyes more comfortable and lessen the strain.
7.) Use computer glasses - Computer glasses are a very appropriate solution for reducing both digital eye strain and the potentially damaging effects on eyes. They look like regular glasses but the difference is in the lens. Anti-Glare screens are available in all shapes and sizes which can be obtained without a prescription.
8.) Blink more often - Staring at a digital screen can reduce how often you blink, causing eyes to become dry. Remind yourself to blink more often, which also helps the eyes refocus.
9.) Go for a 20-20-20 break - Every 20 minutes, take a 20-second break and look at something 20 feet away. Even short breaks make a huge difference.
10.) Feature eyeglasses - Some computer glasses even feature lenses that selectively absorb harmful blue light, preventing it from entering the cornea and causing eye damage. These glasses can include features like anti-reflective coating, glare softening, and blue light absorption that improves the contrast, helping your eyes adjust to harmful emissions.
With that being said, a regular eye checkup and consultation is key to care for our beloved eyes. With the paneled, Ophthalmologist at Jiyyo, you can get the E-consultation done anytime and anywhere.
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पीरियड्स को माहवारी, महीना, रजोधर्म, मेंस्ट्रुअल साइकिल या एमसी आदि नाम से जाना जाता है। औरतों के अन्दर उनके शरीर में हार्मोन के बदलाव की वजह से योनि (वजाइना) से रक्तस्राव होता है। इसे पीरियड्स कहते हैं। पीरियड्स महिलाओं को हर महीने होता है। इसमें अंडा गर्भाशय से बाहर निकल कर रक्त के साथ शरीर से बाहर निकल जाता है।
अल्जाइमर की बीमारी एक दिमागी बीमारी है। यह डिमेंशिया की सबसे आम किस्म है जो व्यक्ति को धीरे धीरे परेशानियों व मुश्किलों की तरफ से ले जाती है। यह एक खतरनाक बीमारी है जो ज्यादातर 50 साल की उम्र के बाद ही देखने को मिलती है, परंतु ऐसा जरूरी नहीं है। कई शोध में पाया गया है कि यह बीमारी 30 या 40 साल के बाद भी शुरू हो सकती है। यहाँ तक कि आजकल ये बीमारी 30 साल से कम उम्र के लोगों में भी देखने को मिल जाती है। इस बीमारी की खोज सबसे पहले जर्मनी के एक मनोवैज्ञानिक और न्यूरोलॉजिस्ट एलोइस अल्जाइमर ने 1906 में की थी। इसीलिए इस बीमारी का नाम उनके नाम से अल्जाइमर हो गया। इस बीमारी में व्यक्ति को ज्यादा से ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है। उसका खास ख्याल रखना बहुत जरूरी है। 21 सितंबर को हर साल पूरी दुनिया में अल्जाइमर दिवस मनाया जाता है। यह इसलिए मनाया जाता है ताकि लोग इसके प्रति जागरूक हो जाएं और उन्हें इस बीमारी की ज्यादा से ज्यादा जानकारी हो सके।
प्रोस्टेट कैंसर एक प्रकार का कैंसर है। प्रोस्टेट कैंसर सिर्फ पुरुषों में ही पाया जाता है। कुछ कैंसर ऐसे भी होते हैं जो कि पुरुषों और महिलाओं दोनों में पाये जाते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो कि या तो पुरुषों में पाए जाते हैं या सिर्फ महिलाओं में पाये जाते हैं। प्रोस्टेट कैंसर महिलाओं में नहीं पाया जाता है। महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर ज्यादा पाया जाता है। प्रोस्टेट कैंसर के मरीज़ आजकल बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं।
अस्थमा की बीमारी एक खतरनाक बीमारी है। यह एक ऐसी बीमारी है कि अगर किसी व्यक्ति को हो जाए तो यह जिंदगी भर रहती है। सच कहिए तो यह एक तरीके की लाइलाज बीमारी है, परंतु कुछ दवाओं और एहतियात के जरिए हम इस पर काबू पा सकते हैं, लेकिन इससे पूरी तरह छुटकारा पाना थोड़ा मुश्किल है। दुनिया में तकरीबन 33 करोड़ से ज्यादा लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं और हर साल तकरीबन ढाई लाख मौत इस बीमारी के कारण होती हैं। इस बीमारी में व्यक्ति को दौरे पड़ते हैं और इसके साथ-साथ उसे बहुत ज्यादा तकलीफ होती है, इतनी तकलीफ कि वे दो कदम चल भी नहीं सकता। अस्थमा की बीमारी सर्दी के दिनों में और ज्यादा नुकसानदेह हो सकती है। आज के शीर्षक में हम अस्थमा की बीमारी के बारे में कुछ बातें करेंगे जिसकी वजह से हम यह पता कर सकेंगे कि आखिर अस्थमा की बीमारी क्या है? इसके लक्षण क्या है? और हम इसके कारणों के बारे में जानेंगे।
Understanding yourself is the first step towards prevention and cure! The highest and the lowest peak of your mood swing could be an indication of your mental health!
हमारे शरीर में दांत बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं। जिन लोगों को दांतों से संबंधित परेशानियां होती हैं वे हमेशा इस बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि किसी भी तरह उनके दांतो की समस्या हल हो जाए, परंतु समय पर उसका खयाल ना रखने पर, अंत में उन्हें सिर्फ और सिर्फ कठिनाईयों का ही सामना करना पड़ता है। इसलिए, समय रहते हुए हमारे पास जो भी चीज है हमें उसका लाभ उठाना चाहिए और उसे सही तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए।
एड्स एक ऐसी बीमारी है जो HIV नामक वायरस के शरीर में आ जाने से होती है। इसका फ़ुल फ़ार्म एक्वायर्ड एमीनों डेफिशियेन्सी सिंड्रोम (Acquired Immunodeficiency syndrome) होता है। एड्स से पीड़ित व्यक्ति का इम्यून सिस्टम कमज़ोर हो जाता है।
ओसीडी (OCD obsessive compulsive disorder) का नाम आते ही हमारे दिमाग में अनेकों प्रकार के विचार आने लगते हैं कि यह कोई बीमारी है, या पागलपन है या कोई जानलेवा बीमारी है। इस प्रकार के बहुत से ख्याल हमारे मन में उत्पन्न होने लगते हैं। अगर हम ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर को ध्यानपूर्वक पढ़ते हैं तो हमें खुद इसका मतलब समझ आ सकता है। ओबसेशन (obsession) का मतलब है किसी भी व्यवहार की पनरावृत्ति। जो विचार हमारे मन में बार-बार आते है उनके प्रति सदैव सोचना व उनसे प्रभावित होकर व्यवहार करना। ये विचार कई प्रकार के हो सकते हैं, पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों प्रकार के हो सकते हैं। ऐसे विचार हमारे मन में बार-बार आते हैं जिसके कारण हमें घबराहट और बेचैनी होने लगती है। हम इसे चाह कर भी नहीं रोक सकते। इसी तरह दूसरा शब्द है compulsion। यह शब्द मजबूरी से जुड़ा है। उदाहरण के लिए यदि हमारे मन में यह विचार आता है कि हमारे हाथ गंदे हैं तो हम ना चाहते हुए भी घबराकर अपने हाथों को बार-बार धोते रहते हैं। यह प्रक्रिया दोबारा फिर से रिपीट होने लगेगी। बार बार हाथ धोना एक प्रकार का कंपल्शन होता है जिससे मरीज को थोड़ी देर के लिए अच्छा महसूस होगा। इस तरह की क्रिया को ही कंपल्शन कहते है।
Sitting and Sleeping are perhaps the most comfortable activities for the human body but prolong sitting and sleeping can have adverse effects too. "As the longer, it takes, the harmful it becomes". Surprisingly, half of the working population spends 6-8 hours per day sitting at their desks every day. Sitting down for long may have short and long term effects on your body and health, making this potentially deadly activity.
आर्कटूरस स्ट्रेन - 600 से अधिक ओमिक्रॉन सबवेरिएंट्स में से एक - पहली बार जनवरी में पाया गया था और तब से 31 देशों में खोजा गया है। इस महीने की शुरुआत में यह बताया गया था कि आर्कटुरस विशेष चिंता पैदा कर रहा था, और यह क्रैकन संस्करण की तुलना में 1.2 गुना अधिक संक्रामक हो सकता है।
मुंह के छाले के विषय में ऐसा शायद ही कोई हो जिसको पता ना हो। यह एक ऐसी समस्या है जिससे बहुत सारे लोग परेशान रहते हैं। मुंह में छाले होना एक आम बात है परंतु जिस व्यक्ति को बार बार मुंह में छाले होते हैं उन्हें चाहिए कि वह पूरी तरीके से डॉक्टर से संपर्क करें और उसके कारण को जानें क्योंकि बार-बार ऐसा होना नुक़सानदेह भी हो सकता है। मुंह में छाले लाल और सफेद दोनों रंग के होते हैं। यह होठों, मसूड़ों, जीभ और मुंह के अंदरूनी हिस्से में होते हैं परंतु कई बार ऐसा होता है कि यह खाने की नली तक पहुंच जाते हैं और खाना खाते समय बहुत ज्यादा तकलीफ का सामना करना पड़ जाता है। मुंह के छाले बहुत दर्द करते हैं और इसके साथ साथ उनमें जलन भी होती है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति कोई भी चीज आसानी से खा नहीं सकता चाहे वह मीठा हो या तीखा। मुंह के छाले कई बार अपने आप ठीक भी हो जाते हैं और कई बार हमें दवाइयां भी लेनी पड़ जाती हैं। होम्योपैथिक और एलोपैथिक दवाएं बाजार में उपलब्ध हैं। इसके साथ-साथ इसे ठीक करने के लिए बहुत से घरेलू नुस्खे भी हैं। मुंह के छाले मुंह की ही लार से ठीक हो जाते हैं लेकिन ऐसा होने में चार-पांच दिन लग सकते हैं। बहुत से घरेलू नुस्खे मुंह के छालों के इलाज के लिए काफी ज्यादा कारगर साबित होते हैं इसलिए दवाओं से बेहतर यही है कि घरेलू नुस्खों को अपनाकर मुंह के छालों से राहत पाया जाए। आज हम चर्चा करेंगे कि घरेलू उपचार से मुंह के छालों को कैसे ठीक किया जा सकता है।
शरीर में वसा का संचय होना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। वसा शरीर की चाहे जिस भाग या आगे पर हो वह व्यक्ति को प्रभावित अवश्य करती है। वसा के जमाव से न सिर्फ़ शरीर का सुडौल आकार ख़राब हो जाता है बल्कि व्यक्ति को अनेक बीमारियों का भी सामना करना पड़ता है। आज कल की ख़राब दिनचर्या या लाइफ़स्टाइल तथा आहार के सही न होने के कारण लोगों को कई बीमारियों से जूझना पड़ता है। फैटी लीवर की समस्या भी आजकल तेज़ी से देखने को मिल रही है। फैटी लीवर एक ऐसी बीमारी है जिसमें लीवर या यकृत पर वसा का संचय होने लगता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि लीवर हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण भाग है जो ना सिर्फ़ भोजन को पचाने में मदद करता है बल्कि शरीर से टॉक्सिन अर्थात ज़हरीले व हानिकारक पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने में भी मदद करता है। इसी के साथ लीवर ऊर्जा को ग्लूकोज के रूप में संचित करके रखता है।
उच्च रक्तचाप या हाइपरटेंशन एक ऐसी बीमारी है जिसके कारण नसों में रक्त का प्रवाह अधिक हो जाता है। हमारे शरीर में रक्त का प्रवाह एक निश्चित गति से होता है।यदि हेल्थ गाइडलाइंस या स्वास्थ्य निर्देशों की बात करें तो शरीर में रक्त का दबाव 120/80mmHg से अधिक नहीं होना चाहिए। यदि रक्त का दबाव या प्रवाह इस निश्चित सीमा को पार कर जाता है तो ऐसे में शरीर में उच्च रक्तचाप या हाइपरटेंशन की स्थिति पैदा हो जाती है। हाई ब्लड प्रेशर या उच्च रक्तचाप ना सिर्फ़ नसों के लिए ख़तरनाक है बल्कि ये शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंगों जैसे हृदय और दिमाग़ को भी नुक़सान पहुँचा सकता है। हमारा हृदय रक्त को शुद्ध करने के लिए एक निश्चित गति से कार्य करता है। एक सामान्य रक्तचाप की स्थिति में हृदय को रक्त पंप करने में कोई परेशानी नहीं होती। ठीक इसके उल्टा यदि रक्तचाप बढ़ जाता है तो ऐसे में हृदय पर एक अलग दबाव पड़ना शुरू हो जाता है। इसके कारण हृदय को काफ़ी तेज़ी से कार्य करने की ज़रूरत पड़ती है। यह स्थिति हृदय के लिए ख़तरनाक है जो हार्ट अटैक को जन्म दे सकती है।
दुनियाभर में लाखों लोग डायबिटीज नामक इस बीमारी से ग्रसित हैं। डायबिटीज या मधुमेह को लोकल लैंग्वेज यानी बोलचाल की भाषा में `शुगर´ कहते हैं। यह एक लाइलाज बीमारी है जो जड़ से कभी खत्म नहीं होती है। यह कंट्रोल की जा सकती है यानी इस पर सिर्फ नियंत्रण किया जा सकता है। जिस भी व्यक्ति को यह बीमारी हो जाती है उसे इसका इलाज बंद नहीं करना चाहिए। डायबिटीज हमें तब होती है जब शरीर की रक्त शर्करा या ग्लूकोस अधिक हो जाती है। ब्लड ग्लूकोस हमारी ऊर्जा का प्रमुख स्रोत होता है। हम जो भोजन (खाना) ग्रहण करते हैं अर्थात खाते हैं उससे हमारे शरीर को रक्त शर्करा प्राप्त होती है। डायबिटीज को अगर हम इलाज द्वारा नियंत्रित ना करें तो इसका असर हमारे शरीर के अन्य भागों जैसे किडनी (गुर्दा), आंख, फेफड़ा, ह्रदय और ब्लड प्रेशर पर पड़ता है। जब हमारे शरीर के हार्मोन इंसुलिन (बीटा सेल्स के अंदर पैंक्रियास से निकलने वाला हार्मोन) हमारे शरीर के साथ सही ताल-मेल नहीं बिठा पाता है तब यह बीमारी होती है। मधुमेह को डायबिटीज मिलिटियस भी कहते हैं। यह एक खराब जीवनशैली के कारण होता है। आज के इस लेख में हम डायबिटीज यानी मधुमेह के बारे में कुछ बातें साझा करेंगे। आशा करते हैं कि यह आपके लिए उपयोगी सिद्ध होंगी।
इंसान के शरीर में जब कोशिकाएं यानी सेल्स के जीन्स में किसी भी तरह का बदलाव आने लगता है तो कैंसर की शुरुआत होती है। कैंसर अपने आप से भी हो सकता है या फिर गुटखा, तंबाकू या कोई भी नशीले पदार्थ का सेवन करने से भी होता है। इसके लिए अल्ट्रावॉयलेट रेज और रेडिएशन भी जिम्मेदार हो सकते हैं। कैंसर की वजह से इम्यून सिस्टम खराब हो जाता है और शरीर इसको झेल नहीं पाता। जैसे-जैसे कैंसर शरीर में बनता है वैसे वैसे ट्यूमर यानी एक तरह की गांठ बनने लगती है और धीरे-धीरे पूरे शरीर में फैल जाती है। लोग कैंसर को एक लाइलाज बीमारी समझते हैं लेकिन अगर कैंसर के शुरू में ही इस पर काबू पा लिया जाए तो इससे छुटकारा पाया जा सकता है। कैंसर एक बहुत खतरनाक बीमारी है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि गुर्दा या किडनी हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग होता हैं। किडनी हमारे शरीर में एक फ़िल्टर या छन्नी की तरह कार्य करती है। किडनी हमारे शरीर से हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालने का कार्य करती है। हम जो भी खाना खाते हैं उसमें पोषक तत्वों के साथ साथ कुछ हानिकारक तत्व भी होते हैं। किडनी रक्त से हानिकारक पदार्थों को छान कर अलग करती है और यूरीन या मूत्र के माध्यम से शरीर से बाहर निकालने का कार्य करती है। क्या आप जानते हैं कि किडनी न सिर्फ़ शरीर से हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालने का कार्य करती है बल्कि इसके अलावा भी किडनी रक्तचाप को संतुलित रखने तथा शरीर में अन्य रसायनों या केमिकल्स के स्तर को संतुलित करने में भी मदद करती है? जी हाँ,ये सारे ही काम किडनी करती है। अब बात आती है कि हम अपने गुर्दों को स्वस्थ कैसे रख सकते हैं? दरअसल गुर्दों को स्वस्थ रखने के लिए हमें कुछ ज़रूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए जिससे कि हम एक स्वस्थ जीवन की ओर बढ़ सकें। आज के अपने इस लेख में हम गुर्दों को स्वस्थ रखने से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण उपायों की चर्चा करेंगे। तो आइए देखते हैं कि वे क्या हैं।
Summer-time is vacation time, leisure time, outing time, and at the same time, it's the SKIN problem time. Along with the fun of coconut water and cold drinks, summers gives you all sorts of vague sensations like burning and pricking, pain & discomfort more often supplemented by the appearance of mysterious bumps, lumps, cracking, crusting, oozing & swelling. No matter how best you try to take care of yourself, warm weather always plays the role of a villain in one's life.
कमजोरी - लगातार थकान की भावना है और यह शारीरिक या मानसिक या दोनों शारीरिक एवं मानसिक स्थिति का संयोजन हो सकता है। यह किसी को भी प्रभावित कर सकता है, और अधिकांश वयस्क अपने जीवन में कभी न कभी थकान का अनुभव करते हैं।
आजकल की बदलती जीवनशैली तथा ग़लत खानपान कई बीमारियों को सीधा निमंत्रण दे रही है। आज लोग जंक फ़ूड, फ़ास्ट फ़ूड, कोल्ड ड्रिंक्स इत्यादि का बेहद शौक़ से सेवन करने लगे हैं।इससे लोग न सिर्फ़ मोटापे का शिकार हो रहे हैं बल्कि वे गठिया या अर्थराइटिस जैसी पीड़ादायक बीमारी की चपेट में भी आ रहे हैं। जी हाँ, अर्थराइटिस या गठिया रोग आज लोगों में बहुत तेज़ी से फैल रहा है। ये रोग आज ना सिर्फ़ बूढ़े लोगों में ही देखने को मिलता है बल्कि इसकी चपेट में नौजवान लोग भी आ रहे हैं।अर्थराइटिस से पीड़ित लोगों के शरीर में काफ़ी दर्द होता है। अर्थराइटिस घुटनों और कूल्हे की हड्डियों पर अधिक प्रभाव डालता है। इस रोग से पीड़ित लोग अपने हाथ पैर को हिलाते वक़्त काफ़ी तक़लीफ का सामना करते हैं। आज के अपने इस लेख में हम अर्थराइटिस से सम्बंधित महत्वपूर्ण बातों की चर्चा करेंगे। तो आइए अपने इस लेख की शुरुआत करते हैं।
As a company, Jiyyo Innovations has always been a company that has encouraged flexibility in its processes, diversity in its employees, and innovation in its growth. As more and more companies move towards the 'work from home' model, we at Jiyyo are working on perfecting what is already a norm in our company.
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम खुद के लिए बहुत ही कम वक्त निकाल पाते हैं जो हमारे शरीर के लिए बहुत ही नुकसानदायक होता है। अतः हमें अपनी दिनचर्या को परिवर्तित करना चाहिए और खुद के लिए थोड़ा वक्त निकालना चाहिए। हमारे शरीर को प्रोटीन, कैलशियम व विटामिंस की आवश्यकता होती है। इसके लिए हमें विटामिन व मिनरल्स से भरपूर आहार का सेवन करना चाहिए। आधुनिक समय में हम इतना व्यस्त हो गए हैं कि हम अपने शरीर व स्वास्थ्य पर ध्यान ही नहीं दे पाते हैं। अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमें कई प्रकार के विटामिन्स की आवश्कता होती है जिनमें विटामिन डी(Vitamin D) प्रमुख हैं। अब बात आती है कि हम शरीर में विटामिन डी की मात्रा को कैसे नियमित कर सकते हैं। दरअसल इसके लिए हम कुछ विशेष चीज़ों का सेवन कर सकते हैं। इसी के साथ साथ प्राकृतिक स्रोत के रूप में हम सूरज की किरणों पर भी ध्यान दे सकते हैं। जी हाँ, सूरज की किरणों में विटामिन डी की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। आज के अपने इस लेख में हम विटामिन डी से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण बातों की चर्चा करेंगे। तो आइए अपने इस लेख को आगे बढ़ाते हैं।
Success is never monetary or just materialistic, it is an act of service that helps mankind and contributes to the growth of society. Jiyyo Mitra e-clinics emphasizes on providing quality healthcare in rural or semi-urban areas by enabling all the medical facilities and services to reach every nook and corner of the nation via Telemedicine.
आज भारत एक ऐसी महामारी से जूझ रहा है जिससे बचना मुस्किल है और ऐसे में अस्पताल जाना किसी और बिमारी को निमंत्रण देने के बराबर है। इस दौर में दूरचिकित्सा(telemedicine) मेडिकल उपचारों का बढ़िया साधन बनता जा रहा है। भारत की 60 प्रतिशत जनसंख्या इसका उपयोग करती है। पर आज भी गांव में दूरचिकित्सा पूर्णतः संभव नहीं।
COVID is the new normal and this time calls for every service to be online! So what is our medical fraternity up to, being the crucial one? Jiyyo has an excellent answer to cover all your needs in the medicinal domain. Before we proceed any further let's make a pledge that we are going to knock this unknown enemy down with all the precautionary measures and guess what? Jiyyo has got you covered to accomplish this goal!
दर्द एक बीमारी नहीं, मात्र एक लक्षण है जिसके पीछे का कारण का निदान और इलाज आवश्यक है। दर्द को नज़रंदाज़ करना लगभग हर भारतीय की आदत होती है । परंतु यदि दर्द (pain) की अवधि 3 महीना या उससे अधिक हो जाए तो उसका इलाज जटिल हो जाता है । हम में से अधिकांश लोगों ने कभी ना कभी दर्द का अनुभव किया ही होगा, कभी ये दर्द कुछ ही समय का होता है और साधारण उपायों से वह ठीक भी हो जाता है लेकिन कई बार दर्द अधिक समय तक बना रहता है या बार-बार होता है। ऐसे में इसे नजरअंदाज करना गलत हो सकता है। खुद से दर्दनिवारक दवा खा लेना, बाम लगा लेना या सेक दे लेना, ये सब कुछ समय के लिए दर्द कम कर सकते है परंतु इसका ठोस डाययग्नोसिस करना एवं इलाज लेना बहुत ज़रूरी है । Jiyyo Innovations के द्वारा एक वेबिनार का आयोजन किया गया जिसमें जियो मित्र ई क्लिनिक के पैनलिस्ट डॉक्टर रचित गुलाटी ने दर्द और गठिया रोग से सम्बंधित महत्वपूर्ण बातों की चर्चा की। डॉक्टर रचित गुलाटी अर्थराइटिस (Arthritis) और गठिया रोग के स्पेशलिस्ट डॉक्टर हैं। इस वेबिनार में बतायी गयी महत्वपूर्ण बातों का एक लेख हम यहाँ पर प्रस्तुत कर रहे हैं। आइए हम डॉक्टर रचित गुलाटी के द्वारा बताए गए महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर एक दृष्टि डालते हैं।
India is all set to achieve yet another milestone towards the development, with now the health care facilities and tracking all being digitized. The Government of India, during the Independence Day congregation, has launched the National Digital Health Mission (NDHM), an initiative to digitize the health records of all the citizens. NDHM is aimed to bring a new revolution in India's health care sector with the use of technology prudently to reduce the challenges in treatment effectively and efficiently.
किसी भी व्यक्ति की सुंदरता में त्वचा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि त्वचा स्वस्थ है तो ऐसे में व्यक्ति की सुंदरता में चार चाँद लग जाते हैं। वहीं यदि बात करें त्वचा के अस्वस्थ होने की तो ऐसे में व्यक्ति भी मुरझाया नज़र आता है। जब त्वचा पर दाने, मुँहांसे व एलर्जी हो जाती है तो ऐसे में त्वचा की सुंदरता में गिरावट आने लगती है। इसी के साथ साथ ये एलर्जी हमारे स्वास्थ्य के लिए भी नुक़सानदेह होती है। आज के अपने इस लेख में हम स्किन एलर्जी पर एक विशेष चर्चा करेंगे। तो आइए अपने इस विषय की शुरुआत करें।
This article is about Parkinson's disease and the experience of treating such patients at Jiyyo e-Clinics
मई-जून का महीना शुरू होते ही गर्म हवाओं की तेजी इतनी बढ़ जाती है कि वही धूप जो हमें ठंडक में अच्छी लगती थी वही मई-जून व जुलाई के महीने में हमारे लिए बहुत ही ज्यादा चिंता का विषय बन जाती है। यह हवाएं इतनी गर्म होती हैं कि यह बीमारियों का कारण बन जाती हैं। मौसम का तापमान बढ़ने के कारण बहुत सी बीमारियां होने लगती हैं, गर्म हवाओं के कारण लोगों को बीमारियों का सामना करना पड़ता है और इसके साथ-साथ उनकी त्वचा भी प्रभावित होती है।
With over 250+ e-clinic installations till date, we assure this chain of good healthcare expands exponentially, wherein the focus is not just on the quantity but the quality of the results. Hence the patients, doctors, or operator’s testimonies/feedbacks feel like a diamond in our crown.
हमारे शरीर में कई महत्वपूर्ण अंग पाए जाते हैं जिनमें से लीवर का भी एक नाम आता है। लीवर को हम जिगर या यकृत भी कहते हैं। ये हमारे शरीर में एक डिटॉक्सीफायर की तरह काम करता है जिसका अर्थ है कि ये हमारे शरीर से हानिकारक पदार्थों को छानने का कार्य करता है। सिर्फ़ इतना ही नहीं बल्कि लीवर भोजन को पचाने तथा उपापचय अर्थात मेटाबॉलिज़्म की प्रक्रिया को सही से करने में भी मदद करता है। इसलिए ये बेहद ज़रूरी है कि हमारा लीवर स्वस्थ हो अन्यथा हम अनेक गंभीर बीमारियों का शिकार हो सकते हैं। अब बात आती है कि हम अपने लीवर को स्वस्थ कैसे रख सकते हैं। इसके लिए हम दिन प्रतिदिन कुछ उपायों का पालन कर सकते हैं। आज के अपने इस लेख में हम लीवर को स्वस्थ रखने के कुछ महत्वपूर्ण उपायों की चर्चा करेंगे। तो आइए अपनी इस सफ़र की शुरुआत करते हैं।
हमारे जीवन में हमारी आंखों का बहुत महत्व है। आंखें हमारे शरीर का एक बहुत ही महत्वपूर्ण और नाजुक हिस्सा हैं। हमें अपनी आंखों की हमेशा देखभाल करनी चाहिए। यदि एक पल के लिए भी हमारी आंखें हमसे अलग हो जाएं तो हमारी जिंदगी में अंधेरा हो जाएगा। आजकल हम लोग टीवी, लैपटॉप व मोबाइल का बहुत अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं जिसकी वजह से हमारी आंखों पर डायरेक्ट असर पड़ रहा है और हमारी आंखें दिन पर दिन कमजोर होती जा रही हैं। हमें अपने आंखों की देखभाल हमेशा करना चाहिए। हमें कंप्यूटर, मोबाइल, लैपटॉप, आईपैड आदि का प्रयोग कम से कम करना चाहिए। यदि यह कहा जाए कि आंखें भगवान की तरफ़ से दिया हुआ एक अनमोल तोहफ़ा हैं तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है। हमारी आँखों के द्वारा ही हम इस दुनिया की सुंदरता को देखने में सक्षम हो पाते हैं। आँखों को स्वस्थ होना बेहद ज़रूरी है। यदि हमारी आँखों की रोशनी दूर हो जाए तो ऐसे में हम किसी भी चीज़ को देख नहीं पाएंगे। इससे ना सिर्फ़ हमारी ज़िंदगी में अंधेरा भर जाएगा बल्कि हम निराश भी हो जाएंगे। इन सब बातों पर ध्यान देते हुए हम ये कह सकते हैं कि आँखों की देखभाल करना सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है। अब बात आती है कि हम आप अपनी आँखों को कैसे स्वस्थ रख सकते हैं। इसके लिए हम आज के अपने इस लेख में कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा करेंगे। इन बिंदुओं के द्वारा हम आपको बताएंगे कि हम अपनी आँखों की देखभाल कैसे कर सकते हैं। तो आइए देखते हैं कि वे क्या हैं।
आज की दुनिया में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसको तनाव ना होता हो। तनाव का होना अच्छी बात है परंतु एक हद के बाहर तनाव का हो जाना यह खतरनाक हो सकता है। जब यही तनाव हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में हमें परेशान करने लगता है तभी दिक्कत आती है। जिस व्यक्ति को तनाव हमेशा रहता है उसको इलाज के लिए किसी से सलाह लेना चाहिए। यह बात याद रखें कि यह कोई शर्म की बात नहीं है। यह कोई पागलपन या कोई बीमारी नहीं बल्कि ऐसा कभी भी किसी भी व्यक्ति के साथ हो सकता है।
हाल ही में एक मशहूर TV एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला की अचानक मौत में लोगों को एकदम हैरान कर दिया। लोगों को इस बात का काफ़ी गहरा सदमा लगा कि आख़िर एक चलता फिरता मज़बूत नौजवान यूं अचानक कैसे इस दुनिया से चला गया। सिद्धार्थ शुक्ला की मौत के कारणों के पीछे लोगों ने कई आशंकाओं को ज़ाहिर किया जिनमें से एक थी आत्महत्या। पहले तो लोगों को लगा कि सिद्धार्थ शुक्ला ने आत्महत्या की है लेकिन मेडिकल रिपोर्ट्स के आने के बाद इस बात की पुष्टि हुई कि सिद्धार्थ शुक्ला की मौत आत्महत्या से नहीं बल्कि हार्ट अटैक से हुई है। सिद्धार्थ शुक्ला काफ़ी फ़िट थे और वे अपनी ज़िंदगी में जिम और अच्छे खानपान को काफ़ी महत्व देते थे। यह वास्तव में एक ऐसी ख़बर थी जिसकी वजह से काफ़ी लोगों को हैरानी हुई। दरअसल हम यह सोचते हैं कि हार्ट अटैक या तो सिर्फ़ बुढ़ापे में आता है या फिर ये उन लोगों को आता है जो फ़िटनेस का ख्याल नहीं रखते। यह बात सत्य नहीं है। हार्ट अटैक एक ऐसी बीमारी है जो ना सिर्फ़ ख़तरनाक है बल्कि किसी भी उम्र के व्यक्ति को लग सकती है।
ओबेसिटी को मोटापा भी कहा जाता है। आजकल यह बीमारी बहुत ज्यादा बढ़ गई है या यूं कह लें कि यह बीमारी आजकल बहुत गंभीर बीमारी बन गई है। इस बीमारी की कोई उम्र नहीं होती है। यह किसी भी उम्र में हो जाती है। आजकल बच्चों से लेकर बूढ़े जवान सब लोगों में यह बीमारी देखी जाती है। हर साल 11 अक्टूबर को विश्व मोटापा दिवस मनाया जाता है ताकि इस बीमारी कि अधिक से अधिक जानकारी लोगों में बढ़ाई जा सके।
समय रहते उपयोग हो मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं स्वास्थ्य लागत की कमी करने तथा संसाधनों को मुक्त करने में मदद पहुँ चाती हैं। मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं तनाव, चिंता और मादक द्रव्यों के सेवन से संबंधित पुरानी बीमारियों के जोखिम को भी कम करती हैं। अभी तक इन सेवाओं से वंचित भारत के ग्रामीण प्रदेश अब टेली मेडिसिन के माध्यम से इसका लाभ उठा पायेंगे ।
एल्बिनिज्म या रंगहीनता एक प्रकार का जेनेटिक डिसऑर्डर अर्थात वंशानुगत रोग है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति के शरीर में मिलेनिन का निर्माण पर्याप्त मात्रा से या तो कम होता है या तो होता ही नहीं है।
आज हमारे लेख का विषय है डिप्रेशन! डिप्रेशन क्यों होता है? इसके लक्षण क्या हैं? इसका निवारण कैसे होता है और इस पर रोकथाम कैसे किया जाए! आज हम इन सभी चीजों के बारे में जानेंगे। जिस प्रकार एक सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी प्रकार हर चीज के भी दो पहलू होते हैं! यदि डिप्रेशन का अस्तित्व है तो इसका निवारण भी है। आज इसी की चर्चा हम इस लेख में करेंगे।
ट्यूबरक्लोसिस को टीबी की बीमारी भी कहा जाता है। इसको हिंदी में क्षयरोग भी कहते हैं। क्षयरोग बैक्टीरिया से होने वाली एक संक्रमण बीमारी है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हो जाती है। माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस नाम का एक बैक्टीरिया होता है। 1882 में डॉ रॉबर्ट कोक ने माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस को खोजा था। इसीलिए ट्यूबरक्लासिस को कोक डिज़ीज़ भी कहते हैं।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आज हमारी दिन प्रतिदिन की ज़िंदगी कितनी अजीब हो चुकी है। आज हम न सिर्फ़ काम के बोझ तले ही दबे रहे जाते हैं बल्कि आहार में भी हम अच्छी चीज़ें चीज़ों को शामिल नहीं कर पाते हैं। जीवन शैली अथवा लाइफ़स्टाइल के सही न होने के कारण हमें कई बीमारियों का सामना करना पड़ जाता है। आजकल सही जीवनशैली और ख़ान पान के न होने के कारण लोगों में डायबिटीज़ तथा मोटापे की समस्या बहुत देखने को मिलती है। इन बीमारियों का एक कारण और है और वह है व्यायाम (physical exercise) की कमी। हम प्रतिदिन अपने खाने में कैलोरीज लेते रहते हैं। ये कैलोरीज हमारे शरीर में जाकर हमें ऊर्जा देती हैं। वैसे तो कैलोरीज शरीर के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण होती हैं लेकिन यदि हमारे जीवन में फिजिकल एक्टिविटी (physical exercise) या व्यायाम की कमी हो तो ऐसे में ये कैलोरीज हमारे शरीर में वसा के रूप में संचित होने लगती हैं। यह वसा शरीर में ना सिर्फ़ मोटापे को जन्म देती है बल्कि इससे डायबिटीज़ और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों का भी आगमन होता है।
गर्भावस्था का समय एक बहुत नाजुक समय होता है। यह स्त्रियों के लिए उनकी जिंदगी का एक नया मोड़ होता है जो काफी सुंदर होता है, इसके साथ साथ महिलाओं के लिए काफी कठिन भी रहता है। ऐसी हालत में महिलाओं को देखभाल की सख्त जरूरत रहती है। उन्हें अच्छी सेहत और पोषण से भरपूर खाना खाने की आवश्यकता होती है। इसलिए उनके आसपास वालों को चाहिए कि वह उनका अच्छे से ख्याल रखें। इस दौरान महिलाओं को मदद और मोहब्बत की बहुत जरूरत रहती है। उन्हें हमेशा इस बात का एहसास दिलाएं कि वे सुरक्षित हैं और चिंता व अवसाद जैसी समस्याओं से दूर रखने की कोशिश करें। समय-समय पर डॉक्टर से संपर्क करें। चिकित्सक के द्वारा बताए गए उपायों का पालन करें क्योंकि गर्भावस्था में बहुत सी ऐसी बातें होती हैं जिनका अगर ख्याल ना रखा गया तो वह परेशानी का कारण बन सकती हैं। तो आइए जानते हैं कि वह कौन सी ऐसी चीजें हैं जो गर्भवती महिला को परेशानी में डाल सकती हैं।
एक्यूपंचर (Acupuncture) सूईयों के द्वारा किया जाने वाला एक ट्रीटमेंट है। एक्यूपंचर का आविष्कार प्रचीन काल में ही हुआ है। हमारे वेदों में भी सूइयों से इलाज के बारे में जानकारी मिलती है। यह तकरीबन 2000 साल से चला आ रहा है। यह एक कामयाब उपचार है। बाद में वैज्ञानिकों ने इसके बारे में रिसर्च की और यह पाया कि इसके द्वारा किया जाने वाला इलाज सबसे फायदेमंद है। इसके बारे में यूरोप और अमेरिका को पता नहीं था परंतु जब उन्होंने इसके बारे में जाना तो खुद इसके फायदों के बारे में लोगों को जागरूक किया। एक्यूपंचर सबसे पहले चाइना में इस्तेमाल किया गया। असल में यह उन्हीं के द्वारा ईजाद किया गया है। चाइना में इसके बहुत सारे अस्पताल है जहाँ इसका ट्रीटमेंट होता है।
Well-being and Wellness are the two most concerning terms of the year 2020. A sabbatical is not a new term as well, since many people especially working in a corporate environment are well aware of the term. Taking a break from the regular work schedule for the purpose of rest, travel, study, or research with the consent between an employer and employee.
स्वस्थ रहना बहुत आवश्यक है। आधुनिक युग में ख़राब जीवनशैली के कारण हम अस्वस्थ रहने लगे हैं। इन सबके कारण हमें विभिन्न प्रकार की बीमारियां हो जाती हैं अतः हमें स्वस्थ रहने के लिए अपना ध्यान रखना बहुत ही जरूरी है। यदि अपने दिन प्रतिदिन के जीवन में हम कुछ बातों का ख्याल रखें तो ऐसे में हम एक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। इस लेख में आज हम कुछ ऐसे नियम बताएँगे जो स्वस्थ रहने के लिए ज़रूरी हैं। तो आइए इन्ही नियमों के साथ अपने लेख की शुरुआत करते हैं।
कहते हैं कि एक स्वस्थ शरीर में ही एक स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। जी हाँ यदि हम स्वस्थ नहीं हैं तो ऐसे में हम जीवन के अनमोल पहलुओं तथा ख़ुशियों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाएंगे। इसलिए ज़रूरी है कि हम अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दें ताकि हम एक स्वस्थ मस्तिष्क को अपने अंदर समेट कर रख सकें। मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली कुछ मानसिक बीमारियां हैं जिनके बारे में हम महत्वपूर्ण चर्चा करेंगे। तो आइए देखते हैं कि वह बीमारियां कौन कौन सी हैं!
Often, we come across scenarios where even after tough and hard work, we are unable to reach the desired goal. The main reason being, belief in Myths and limited knowledge of facts. To summarize: "A myth corrected is a fact known". Especially with the outbreak of COVID-19, it becomes more emphasizing to keep track of one's weight and fat gain patterns with the new normal of work from home. Long sitting/work schedules, restricted access to GYMs, and parks have made it mandatory to reduce weight/fat at home by keeping a necessary check at your diet.
Corona indeed has been the highest scorer for the number of lives claimed in the year 2020. Wherein coronavirus has grabbed all the attention in the medical fraternity across the world, Have you ever imagined, what are the other life-threatening diseases in the country, that has outperformed any other country(measured by population) in controlling the spread of coronavirus?
Often during work, we all tend to forget ourselves. Indeed work is what gives us bread and butter to live a better life, hence work is always synonymous with financial independence and we all tend to achieve that forgetting our own health.
National Digital Health Mission, this ambitious mission is a move forward in strengthening the Indian health infrastructure lacking patient records and health. The government’s proposal, now put up for public review, focuses on necessary data privacy measures that need to be put in place in order to safeguard the confidentiality of sensitive health information of citizens.
हर कोई जानता है कि चिंतित महसूस करना कैसा होता है। चिंता आपको कार्रवाई के लिए प्रेरित करती है; यह आपको एक खतरनाक स्थिति का सामना करने के लिए तैयार करता है। यह आपको सामना करने में मदद करता है। लेकिन अगर आपको एंग्जायटी विकार है, तो यह सामान्य रूप से सहायक भावना इसके ठीक विपरीत काम कर सकती है - यह आपको मुकाबला करने से रोक सकती है और आपके दैनिक जीवन को बाधित कर सकती है। एंग्जायटी आपको बिना किसी स्पष्ट कारण के ज्यादातर समय बेचैन कर सकता है। चिंता/बेचैनी की भावनाएँ इतनी असहज हो सकती हैं कि उनसे बचने के लिए आप कुछ रोज़मर्रा की गतिविधियों को रोक सकते हैं, या हो सकता है कि आपको कभी-कभार बेचैनी के झटके इतने तीव्र हों कि वे आपको भयभीत और स्थिर कर दें। ऐसी स्थिति में जल्द से जल्द एंग्जायटी का निवारण या प्रबंधन करना आवश्यक हो जाता है।
विज्ञान ने मानव की स्टडी की है और उसने साफ़ साफ़ बता दिया है कि एक पुरुष और महिला में क्या फ़र्क होता है। महिलाओं के शरीर की बनावट पुरुषों से बिलकुल अलग होती है। इसी के साथ महिलाओं के शरीर की समस्याएं और विकास भी पुरुषों से अलग होते हैं। वैसे तो ये कहा जाता है कि लड़कियाँ लड़कों से पहले परिपक्व हो जाती हैं और आपको जानकर हैरानी होगी कि साइंस या विज्ञान भी इस बात को मानती है। इसी के साथ एक सवाल यह भी उठता है कि लड़कियों को गायनोकोलॉजिस्टिक अर्थात लेडी डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए? ये एक महत्वपूर्ण सवाल है लेकिन समाज में इस चीज़ पर ध्यान नहीं दिया जाता। आज के अपने इस लेख में हम इन्ही महत्वपूर्ण बिंदुओं पर एक विशेष चर्चा करने वाले हैं। तो आइए सबसे पहले शुरू करते हैं विज्ञान की दृष्टि से लड़कियों का विकास।
खसरा एक अत्यधिक विषाणुजनित रोग है जो तेजी से फैल सकता है। संक्रमण सीधे संपर्क के माध्यम से या किसी संक्रमित व्यक्ति की खांसी या छींक से सांस की बूंदों के माध्यम से होता है।
एंग्जायटी (Anxiety) इंसान के लिए घातक है! यह मस्तिष्क को चोट देने के साथ ही शरीर को भी नुकसान पहुंचाती है। इस दौड़-भाग में हम लोगों की जिंदगी जैसी हो गई है उसमें एंग्जायटी (Anxiety) का होना बहुत आम बात है। रिश्तों में विश्वास की कमी, एक दूसरे से आगे निकलने की दौड़, असुरक्षित महसूस करना, लड़ाई-झगड़ा, ग़लत व्यवहार, अनियमितता, समाज से दूर रहना, अपनी ही जिंदगी में लीन रहना यह सब बेचैनी के कारण हैं। एंग्जायटी (Anxiety) तो हर किसी को होती है परन्तु इसे बीमारी के तौर पर पहचानना मुश्किल है। अगर कोई विशेष नकारात्मक विचार या परेशानी बहुत लंबे वक्त तक बनी रहे और उससे आपकी रोजमर्रा की जिंदगी पर असर पड़ने लगे तो ये वाकई खतरनाक है।
पाचन एक एक जटिल प्रक्रिया है। विज्ञान के अनुसार जब हम कोई भोजन या पदार्थ खाते हैं तो उस चीज़ का पाचन हमारे मुँह से ही शुरू हो जाता है। पाचन क्रिया एक लंबी प्रक्रिया है जो भोजन को चबाने से लेकर मलत्याग तक होती है। यदि पाचन प्रक्रिया सही से न हो तो ऐसे में शरीर में काफ़ी परेशानियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। पाचन से संबंधित कुछ समस्याएँ जैसे क़ब्ज़, दस्त, उल्टी, एसिडिटी इत्यादि पाचन के सही से ना होने के कारण शरीर में हो जाती हैं। आज के अपने इस लेख में हम पाचन संबंधी समस्याओं के बारे में चर्चा करेंगे। तो आइए अपनी चर्चा को आगे बढ़ाते हैं।
2019 के अंत तक दुनिया को एक नई महामारी का ज्ञान हुआ है जिसे कोरोना वायरस का नाम दिया गया। ये वायरस लोगों के बीच अत्यंत तेज़ी से फैलता है तथा ये लोगों के लिए काफ़ी ख़तरनाक भी माना जाता है। ऐसी उम्मीद की गई थी कि कोरोना वायरस की वैक्सीन आने के बाद विश्व इस महामारी से उबर जाएगा लेकिन आज 2022 आ जाने पर भी इससे कोई निजात नहीं मिल सकी है। बीते दिनों कोरोना के एक नए वेरिएंट के बारे में पता चला जिसे डब्लूएचओ के द्वारा ओमिक्रॉन वेरिएंट का नाम दिया गया है। अभी इस वायरस पर शोध चल रहा है और ठीक तरह से यह कह पाना मुश्किल है कि ये पहले की अपेक्षा ख़तरनाक है या नहीं। आज के अपने इस लेख में हम ओमिक्रॉन वेरिएंट से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण बातों की चर्चा करेंगे। तो आइए अपनी इस चर्चा को इस लेख के माध्यम से आगे बढ़ाते हैं और बात करते हैं ओमिक्रॉन वेरिएंट के परिचय के बारे में।
रुमेटीइड गठिया या रूमेटाइड-आर्थराइटिस, हाथों और पैरों सहित कई जोड़ों को प्रभावित करने वाला एक पुराना सूजन संबंधी विकार है। इसमें, शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली जोड़ों सहित अपने स्वयं के ऊतकों पर हमला करती है। गंभीर मामलों में, यह आंतरिक अंगों पर हमला करता है। रुमेटीइड गठिया जोड़ों के अस्तर को प्रभावित करता है, जिससे दर्दनाक सूजन होती है। लंबे समय तक, रूमेटोइड गठिया से जुड़ी सूजन हड्डी के क्षरण और संयुक्त विकृति का कारण बन सकती है।
2019 के अंत में दुनिया में एक बीमारी ने जन्म लिया जिससे कोरोना या कोविड-19 का नाम दिया गया। यह बीमारी इतनी तेज़ी से फैलती है और यह व्यक्ति की जान तक ले सकती है, इस बात को देखते हुए डब्लूएचओ अर्थात वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने कोरोना को महामारी घोषित कर दिया। पूरा देश और विश्व इस महामारी से अभी भी लड़ रहा है और इसे पूरी तरह से भगाने की कोशिश में जुटा हुआ है। अभी यह महामारी पूरी तरह से ख़त्म होती कि एक और बीमारी डॉक्टरों की नज़र में आईं। इस बीमारी को ब्लैक फंगस नाम दिया गया है। कोरोना वायरस की तरह ही इस बीमारी का एक इतिहास है। यह बीमारी कई साल पहले भी फैल चुकी है और कोरोना वायरस की सेकेंड वेव अर्थात दूसरी लहर के बाद पुनः इस बीमारी ने अपना प्रभाव दिखाया है।
ఆందోళన (Anxiety) మానవులకు ప్రాణాంతకం! మెదడును గాయపరచడమే కాకుండా శరీరానికి కూడా హాని చేస్తుంది.మన ఉరుకుల పరుగుల జీవితంలో ఆందోళన (Anxiety) చాల సాధారణంసంబంధాల పై నమ్మకం లేకపోవడం, అందరికంటే ముందు ఉండాలని అనుకోవడం, అభద్రతా భావం, గొడవలు, అసభ్యంగా ప్రవర్తించడం, అక్రమాలు, ఒంటరిగా ఉండటం ఇవన్నీ అశాంతికి కారణాలు.ఆందోళన (Anxiety) అందరికి ఉంటుంది కానీ వ్యాధిగా గుర్తిచడం కష్టం.ఒక ప్రతికూల ఆలోచన లేదా సమస్యను ఎక్కువ కాలం ఆలోచిస్తే అది మీ రోజువారీ జీవితాన్ని ప్రభావితం చేస్తుంది, అది చాల ప్రమాదకరం.
इंसान के दिमाग की बात की जाए तो इंसान का दिमाग 1400 ग्राम का होता है। इसके 4 भाग होते हैं। फ्रंटल यानी दिमाग के जो सामने का हिस्सा होता है, टेंपोरल मतलब जो बायीं तरफ़ (लेफ्ट हैंड साइड) का दिमाग होता है, पैरंटरल मतलब जो दायीं तरफ़ (राइट हैंड साइड) का दिमाग होता है और ऑक्सीपिटल जो दिमाग का पीछे का हिस्सा होता है। दिमाग का हर हिस्सा अपना अलग कार्य करता है जैसे फ्रंटल पार्ट का काम होता है सोचने का, पैराइटल का कार्य होता है छूने या फिर दर्द के एहसास का, टेंपोरल का काम होता है सुनना, देखना और भाषा को समझना। इसी तरह ऑक्सीपिटल का काम होता है वस्तुओं को पहचानना। मस्तिष्क शरीर का बहुत अहम अंग है। इसका सही रहना आवश्यक है। जब दिमाग में गांठ बन जाती है तो इसको ट्यूमर कहते हैं। ब्रेन के जिस हिस्से में ट्यूमर होता है तो उस हिस्से से नियंत्रित होने वाला शरीर का भाग प्रभावित होता है।
डेंगू एक ख़तरनाक बीमारी है जिसका समय रहते उपचार करवाना आवश्यक है। डेंगू एक ख़तरनाक बीमारी है क्योंकि अभी तक डेंगू का कोई विशिष्ट इलाज नहीं खोजा जा सका है। डेंगू एक वायरस के कारण होता है इस वजह से अभी तक इसके इलाज को खोजना संभव नहीं हो सका है। डेंगू बीमारी से बचाव करना बेहद ज़रूरी है अन्यथा ये प्राणघातक भी हो सकता है। इसलिए यह ज़रूरी है कि हम इस बीमारी की गंभीरता को समझें और इसे हल्के में बिलकुल भी ना लें। डेंगू बीमारी में व्यक्ति के शरीर में प्लेटलेट्स या लाल रक्त कणिकाओं का स्तर हद से ज़्यादा कम हो जाता है जोकि अपने आप में ही एक ख़तरनाक स्थिति है। आप जानकर चौंक जाएंगे कि यदि लाल रक्त कणिकाओं का स्तर एक निश्चित पैमाने से कम हो जाएं तो ऐसे में व्यक्ति की जान जाने का भी ख़तरा रहता है। अब आप इस बात से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि किसी मच्छर का काटना एक व्यक्ति के लिए कितना भारी पड़ सकता है। डेंगू से बचना बेहद ज़रूरी है और इसके लिए हमें ये जानना होगा कि डेंगू के कारण क्या हैं। इसी के साथ हम डेंगू के लक्षण और निवारण के बारे में भी चर्चा करेंगे। तो आइए अपनी इस लेख को आगे बढ़ाते हैं और बात करते हैं डेंगू के कारण के बारे में।
कोलेस्ट्रॉल एक वसा जैसा पदार्थ है जो लिवर बनाता है। इसके शरीर पर कई तरह के हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं। आइए इसके कारणों और लक्षणों का पता लगाएं।
डायरिया पाचन से संबंधित एक बीमारी है जिसमें व्यक्ति को दस्त आना शुरू हो जाते हैं। वैसे तो व्यक्ति को दस्त आने की बीमारी एक सामान्य बीमारी है लेकिन इसका उपचार बेहद ज़रूरी है।डायरिया में भी व्यक्ति को लगातार दस्त आते हैं जो यदि ठीक न हो तो निर्जलीकरण का कारण बन सकते हैं।डायरिया की बीमारी एक साधारण बीमारी है, जो हर व्यक्ति को साल में एक या दो बार जरूर होती है। इससे व्यक्ति के अंदर बहुत कमजोरी पैदा हो जाती है। अगर यह लगातार कई दिनों तक हो जाए तो इससे मौत भी हो सकती है। डायरिया में व्यक्ति को जो मलत्याग होता है कि वह काफ़ी पतला होता है। ये रोग आंतों में रहने वाले परजीवी के कारण देखने को मिलता है। इस रोग में व्यक्ति के शरीर से पानी की मात्रा काफ़ी ज़्यादा निकल जाती है। यदि इसका समय पर इलाज न किया जाए तो शरीर में निर्जलीकरण की स्थिति उत्पन्न हो सकती है जिससे मृत्यु का ख़तरा बढ़ जाता है।
In today's era work from home jobs have opened up a new horizon of opportunities. Now boundaries no longer matter. All that matters is how good you are !
जैसा कि हम सब हम सभी जानते हैं कि कैंसर एक लाइलाज बीमारी है। वैसे तो कैंसर एक ख़तरनाक बीमारी है लेकिन यदि शुरुआती स्तर पर इसकी पहचान हो जाए तो ऐसे में कैंसर का इलाज संभव है। कैंसर अपने चरम स्तर अर्थात आख़िरी स्टेज पर लाइलाज माना जाता है। कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर की कोशिकाएं अनियंत्रित होकर विभाजित होना शुरू हो जाती हैं। शरीर में कैंसर कई प्रकार से फैलता है। इसका मतलब है कि शरीर में कैंसर कई अंगों पर अपना असर दिखा सकता है। अग्न्याशय कैंसर भी एक प्रकार का कैंसर है जो काफ़ी ख़तरनाक माना जाता है।
Maternal wellness is as necessary as the healthy future of the country, it not only includes the physical but also the mental wellbeing of an expecting mother.