भारत को गांवों का देश कहा जाता है। भारत की जनसंख्या का एक बड़ा भाग भारत के गांवों में निवास करता है। गाँव के लोगों को अक्सर अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है जिनमें से एक बड़ी और भयंकर परेशानी का नाम है चिकित्सीय
सुविधाओं का अभाव।और अन्य बिमारियों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में मानसिक रोगों के लिए जागरूकता और भी कम है। आज डिप्रेशन और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं ना सिर्फ़ शहरों तक सीमित रह गई हैं बल्कि गाँव के लोगों में भी ये परेशानियां
देखने को मिल रही हैं।आज के अपने इस लेख में हम ग्रामीण भारत में मनोवैज्ञानिक परामर्श तथा टेली मेडिसिन के द्वारा दिए गए सहयोग
पर एक विशेष चर्चा करेंगे। तो आइए अपने इस महत्वपूर्ण विषय की शुरुआत करते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से प्रस्तुत की गई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 5.6 करोड़ लोग डिप्रेशन अर्थात अवसाद से पीड़ित हैं
तथा 3.8 करोड़ लोग चिंता विकार से पीड़ित हैं।
भारतीय जनसंख्या के इतने बड़े भाग के द्वारा मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना किया जाता है। आंकड़े बताते हैं कि जनसंख्या का लगभग 20% भाग मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करता है किंतु इन समस्याओं के निदान हेतु केवल 12% लोग ही आगे बढ़ते हैं.
इतनी बड़ी जनसंख्या का मानसिक स्वास्थ्य संबंधी निदान से वंचित रहने का कारण उनका निवास स्थल भी हो सकता हैं।ऐसा इसलिए क्योंकि आंकड़े बताते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी निदान ना खोज पाने वाले लोग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं।
ग्रामीण भारत में चिकित्सीय सुविधाओं का होना अपने आप में एक चुनौती से भरा हुआ कार्य प्रतीत होता है।
यदि ग्रामीण भारत की तुलना शहरी भारत से की जाए तो ऐसे में सुविधाओं के अनुपात में एक भारी अंतर दर्ज किया जा सकता है।
ग्रामीण भारत में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझ रहे लोग अशिक्षा के कारण भी इसके निदान से वंचित रह जाते हैं।
“मानसिक स्वास्थ्य भी आवश्यक है”, ग्रामीण भारत में इस वचन के प्रति जागरूकता का अभाव होता है।
ये कुछ ऐसे कारण हैं जिनसे ग्रामीण भारत मनोवैज्ञानिक परामर्श में पिछड़ता हुआ दिखाई देता है।
बहुत से डिप्रेशन आदि के मरीज सालों से दर्द जैसे सर दर्द , शरीर दर्द , थकान, भुखार की दवाई खाते रहते हैं जिससे उनको इन दवाओं की
आदत हो जाती है | उन्हें यह समझाना मुश्किल हो जाता है की दरअसल यह मानसिक रोग भी हो सकता है |
मानसिक रोगों के लिए जागरूकता के आभाव में इन रोगों को पागलपन समझा जाता है इसलिए रोगी इसे मानने में संकुचाते हैं |
सर गंगाराम अस्पताल, नई दिल्ली के साइकायट्रिस्ट कंसल्टेंट डॉक्टर राजीव मेहता के अनुसार जागरूकता का अभाव परेशानी को बढ़ा देता है।
उनका कहना है, “मानसिक पीड़ा का सामना कर रहे लोग अपनी परेशानी से परिचित नहीं होते हैं।
वे इसे अपने भाग्य का खेल समझते हैं तथा अनेक बाबाओं और नक़ली डॉक्टरों के पास इलाज के लिए जाते हैं यही कारण है कि
मनोचिकित्सक और मानसिक रोगों के साथ अविश्वास और पुरानी धारणाएँ जुड़ी हुई हैं।” यह बात सत्य है कि ग्रामीण भारत के लोग जब किसी
मानसिक रोग का सामना करते हैं तो वे इसे किसी भूत प्रेत का साया समझते हैं। मानसिक रोग के लक्षणों को वे किसी जिन या पिशाच से जोड़ते हैं
और इसके लिए झाड़ फूंक का सहारा लेते हैं। लोग मानसिक रोग का सामना कर रहे मरीज़ से डरने लगते हैं जिस कारण समाज में उसका जीना
मुश्किल हो जाता है।मानसिक रोग के लक्षण कठिन और पीड़ादायक होते हैं और इसी के कारण यदि कोई मानसिक रूप से बीमार हो जाता है तो
लोग उसे पागल समझने लगते हैं।
वास्तव में लोग इस बात के प्रति अनभिज्ञ होते हैं कि मनोवैज्ञानिक विकारों को ठीक करके मरीज़ को एक सामान्य जीवन दिया जा सकता है। मनोचिकित्सा कोई पहेली नहीं बल्कि मरीज़ के लिए सामान्य जीवन की एक कुंजी होती है। इसलिए मनोवैज्ञानिक विकारों के प्रति
जागरूक होना अत्यंत आवश्यक है।
जैसा कि हमने पहले बताया कि गांवों में जागरूकता की कमी के साथ साथ सुविधाओं और अवसरों की भी भारी कमी होती है।सुविधाओं की कमी को पूरा करने के लिए अनेक प्रयास किये जा रहे हैं जिनमें से टेलीमेडिसिन के द्वारा दिया गया योगदान
एक महत्वपूर्ण माध्यम माना जा सकता है। स्थानिएं चिकत्साओं में सुधार के साथ साथ टेलीमेडिसिन के जरिये दूर दराज के ग्रामीण
क्षेत्रों में आसानी से पहुंचा जा सकता है
गांवों में सुविधाओं और स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की कमी होती है। किसी भी असाधारण बीमारी के इलाज के लिए गाँव के लोगों दूर
शहर जाना पड़ता है। यह उनके लिए एक बड़ी समस्या होती है क्योंकि गाँव से शहर जाने में ना सिर्फ़ समय ख़र्च होता है बल्कि उनकी
आर्थिक स्थिति पर भी काफ़ी प्रभाव पड़ता है।
इस कारण बहुत से मरीज अपना पूरा इलाज नहीं करवा पाते । इन सभी समस्याओं का एकमात्र समाधान टेलीमेडिसिन लेकर आया है।
टेलीमेडिसिन एक ऐसा माध्यम बनकर सामने आया है जिसने गाँव के चिकित्सीय विकास पर अपना ध्यान केंद्रित किया है।
इसके द्वारा ग्रामीण भारत में रह रहे लोगों तक उत्तम इलाज की सुविधा पहुँचाई जा रही है।
टेलीमेडिसिन के द्वारा गाँव में रह रहे लोगों को दूर शहर नहीं जाना पड़ता। उन्हें उनके गाँव में ही चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। गाँव के लोगों को टेलीमेडिसिन के द्वारा शहर के बड़े और कुशल डॉक्टर्स का परामर्श उपलब्ध कराया जाता है।
इससे ग्रामीण भारत की चिकित्सा सुविधाओं में काफ़ी सुधार आ रहा है।
मनोवैज्ञानिक परामर्श में भी टेलीमेडिसिन का एक महत्वपूर्ण योगदान सामने आ रहा है। दरअसल गाँव के लोग मनोरोग विकारों के प्रति
जागरूक नहीं होते। एक मानसिक रोगी को सदा यह समझा जाता है कि उस पर किसी भूत या पिशाच का साया है।
इस प्रकार लोग बीमारी को बीमारी ही नहीं समझते।टेलीमेडिसिन के द्वारा मनोवैज्ञानिक परामर्श की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है
जिससे लोगों को मानसिक रोगों के प्रति जागरूक किया जा रहा है।
शहरी भारत में तो मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के प्रति लोग काफ़ी जागरूक होते हैं।
सिर्फ़ इतना ही नहीं बल्कि लोग मनोरोग विकारों के प्रकार और उनके लक्षणों के प्रति भी काफ़ी सजग होते हैं। इस प्रकार यदि शहर में रह रहे लोगों को मानसिक रोग होता है तो ऐसे में वे अच्छे डॉक्टर्स या मनोचिकित्सक के पास अपनी इस बीमारी का
इलाज करवाना जाते हैं। जिस प्रकार शहर के लोग अपने पास के डॉक्टर को जाकर दिखा सकते हैं उसी तरह अब गांव में भी मरीज
टेलीमेडिसिन की सुविधा से घर बैठे सही डॉक्टर से इलाज करवा सकते हैं | टेलीमेडिसिन के द्वारा कुशल डॉक्टर्स और साइकायट्रिस्ट या
मनोचिकित्सक एक मोबाइल या कंप्यूटर स्क्रीन से वीडियो कॉल करके मरीज़ को ये बताने में सक्षम होते हैं कि मरीज़ को एक मनोरोग विकार है या नहीं। इस प्रकार जब उनकी बीमारी सामने आ जाती है तो दूर बैठे साइकायट्रिस्ट या मनोचिकित्सक मरीज़ को उसके इलाज का तरीक़ा भी बताते हैं।
टेलीमेडिसिन के कारण मनोरोग विकारों के इलाज की गुणवत्ता में भी सुधार आ रहा है क्योंकि गाँव के लोगों को उनकी इस जटिल
बीमारी का इलाज गाँव में ही मिल पा रहा होता है। बेहतर इलाज के कारण उनका मानसिक स्वास्थ्य भी काफ़ी उत्तम होने लगता है जिससे वे समझ
जाते हैं कि मनोरोगों का इलाज सही डॉक्टर या मनोचिकित्सक ही कर सकते है। इससे एक बात बिलकुल स्पष्ट हो जाती है कि टेलीमेडिसिन
मनोरोग विकारों के प्रति ग्रामीण भारत में ना सिर्फ़ जागरूकता फैला रहा है बल्कि इलाज के बेहतर अवसर भी उपलब्ध करवा रहा है।
मनोरोग विकार के लक्षणों को सही प्रकार से समझने हेतु मनोचिकित्सक से परामर्श अत्यंत आवश्यक है।
आज टेलीमेडिसिन के द्वारा कुशल मनोचिकित्सकों से मनोरोग विकारों का इलाज करवा पाना मुमकिन हो पा रहा है।
इस सुविधा का लाभ न सिर्फ़ शहरी लोग उठा रहे हैं बल्कि ग्रामीण भारत के लोग भी अब अपनी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का एक
बेहतर इलाज पा रहे हैं। इस प्रकार ये कहा जा सकता है कि टेलीमेडिसिन ग्रामीण भारत में मनोवैज्ञानिक परामर्श और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी
समस्याओं के निदान एवं जागरूकता में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है|
टेलीमेडिसिन ने अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं को ग्रामीण भारत में पहुँचाने का कार्य किया है।आज हम देख सकते हैं कि भारत के उन इलाकों में भी बेहतर चिकित्सा सुविधाएँ पहुँच पा रही हैं जहाँ ऐसा सोच भी पाना संभव नहीं लगता था।
इसलिए टेलीमेडिसिन के बढ़ते विकास को देखकर ये कहा जा सकता है कि आने वाले समय में ग्रामीण भारत को शहरों के बराबर लाया जा
सकेगा। अब ग्रामीण भारत भी चिकित्सीय विकास और मनोवैज्ञानिक परामर्श के क्षेत्र में आगे बढ़ने में सक्षम हो रहा है।