विज्ञान ने मानव की स्टडी की है और उसने साफ़ साफ़ बता दिया है कि एक पुरुष और महिला में क्या फ़र्क होता है।
महिलाओं के शरीर की बनावट पुरुषों से बिलकुल अलग होती है। इसी के साथ महिलाओं के शरीर की समस्याएं और विकास भी पुरुषों से अलग होते हैं।
वैसे तो ये कहा जाता है कि लड़कियाँ लड़कों से पहले परिपक्व हो जाती हैं और आपको जानकर हैरानी होगी कि साइंस या विज्ञान भी इस बात को मानती है।
इसी के साथ एक सवाल यह भी उठता है कि लड़कियों को गायनोकोलॉजिस्टिक अर्थात लेडी डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए?
ये एक महत्वपूर्ण सवाल है लेकिन समाज में इस चीज़ पर ध्यान नहीं दिया जाता। आज के अपने इस लेख में हम इन्ही महत्वपूर्ण बिंदुओं पर एक विशेष चर्चा करने वाले हैं। तो आइए सबसे पहले शुरू करते हैं विज्ञान की दृष्टि से लड़कियों का विकास।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि लड़कियों के शारीरिक बनावट लड़कों की अपेक्षा काफ़ी अलग होती है तो ऐसे में ये बात बिलकुल स्वाभाविक सी है कि लड़कियों का विकास और उनका स्वाभाव भी बिलकुल अलग होगा।
बात करें यदि शारीरिक विकास की तो विज्ञान के अनुसार लड़कियाँ माँ के पेट से ही परिपक्व होती हैं। दरअसल जब कोई महिला गर्भवती होती है और उसके गर्भ में लड़की होती है तो ऐसे में उस गर्भ में पल रही लड़की के शरीर में कुछ अंडे होते हैं। इन्हें प्राइमरी ऊसाइट कहा जाता है। जब लड़की जन्म लेती है तब भी यह प्राइमरी अंडे उसके शरीर में होते हैं।
जन्म से लेकर 10 साल तक यह अंडे शरीर में ऐसे ही रहते हैं। जब लड़की प्यूबर्टी अर्थात परिपवक्ता की स्टेज पर आती है तो ऐसे में ये अंडे विकसित हो जाते हैं।
लड़कियों में प्यूबर्टी या परिपवक्ता की उम्र लगभग 10 साल के बाद मानी जाती है। ये प्राइमरी अंडे तब ही मैच्योर या परिपक्व होते हैं जब एक लड़की को उसका पहला पीरियड या मासिक धर्म आता है।
मासिक धर्म आने से पहले तक के सारे ऊसाइट प्राइमरी ही रहते हैं।
मासिक धर्म के पश्चात यह निश्चित हो जाता है कि ये अंडे ना सिर्फ़ परिपक्व हो गए हैं बल्कि लड़की अब गर्भ भी धारण कर सकती है।
मासिक धर्म के बाद जो अंडे लड़की की गर्भ में होते हैं उन्हें सेकेंडरी ऊसाइट कहा जाता है। यदि सेकेंडरी ऊसाइट को शुक्राणु मिल जाता है तो ऐसे में ये फ्यूज होकर ओवम बन जाता है।
आगे चलकर ओवम विकसित होता जाता है और बच्चे के रूप में दुनिया में पैदा होता है। ये एक वैज्ञानिक विश्लेषण है।
यहाँ पर एक बात और स्पष्ट होती है कि किसी लड़की के लिए उसके मासिक धर्म का होना कितना आवश्यक है। मासिक धर्म असल में इसलिए ज़रूरी होते हैं क्योंकि ये एक निशानी होते हैं कि अब लड़की परिपक्व हो गई है और बच्चे को जन्म दे सकती है।
यदि लड़की के बाहरी शरीर की बनावट की बात करें तो ऐसे में भी उसका विकास लड़कों की अपेक्षा थोड़ा अलग होता है।
मासिक धर्म के शुरू होने के बाद लड़की के शरीर में वसा का जमाव विभिन्न अंगों पर होने लगता है।
छाती पर वसा का जमाव होने लगता है जिससे स्तनों का विकास शुरू हो जाता है। इसी के साथ नितम्बों, जांघों और थोड़ा बहुत कमर पर भी वसा का जमाव होता है। आवाज़ सुरीली हो जाती है।
अंडरआर्मस या बगलों में बाल उगते हैं। इसी के साथ योनि के आस पास के एरिया में भी बाल आने शुरू हो जाते हैं। हड्डियाँ सुडौल हो जाती हैं जो शरीर को एक आकर्षक रूप प्रदान करती हैं।
लड़की के शरीर के विकास का सबसे महत्वपूर्ण भाग मासिक धर्म होता है। मासिक धर्म के बाद ही ये सारे परिवर्तन एक लड़की अपने शरीर में महसूस कर सकती है।
ये तो है लड़कियों के शारीरिक विकास की बात। अब बात आती है कि ऐसी कौन सी स्थितियां होती हैं जब एक लड़की को एक डॉक्टर के पास जाना ज़रूरी हो जाता है। पीरियड्स व गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याओं के इलाज के लिए लड़कियों को डॉक्टर के पास आवश्यक जाना चाहिए। तो आइए देखते हैं पीरियड्स व गर्भावस्था के दौरान एक लड़की को किन किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
1.) पीरियड्स में देरी
विज्ञान के अनुसार किसी भी लड़की को 10-14 साल की आयु से ही पीरियड्स होना शुरू हो जाते हैं। कुछ लड़कियों में पीरियड्स दस साल से पहले भी हो सकते हैं।
पीरियड्स का आना खानपान तथा जलवायु पर भी निर्भर करता है।
कुछ लड़कियों को पीरियड्स 15-16 साल की उम्र में भी हो सकते हैं। यह भी देखा जा सकता है लेकिन यदि एक लड़की के पीरियड्स इस उम्र के बीत जाने के बाद भी नहीं हो रहे हैं तो ऐसे में उन्हें डॉक्टर के पास ले जाना ज़रूरी होता है। लड़की के शरीर के चेकअप के बाद पीरियड्स के देर से आने का कारण सामने आ जाएगा। फिर उसी के अनुसार डॉक्टर दवाइयों के द्वारा पीरियड्स में देरी की समस्या से छुटकारा दिलाने में आपकी मदद कर पाएगा।
2.) पेट में दर्द
पीरियड्स के दौरान लड़कियों को पेट दर्द की समस्या होती है। पीरियड्स के दौरान कभी कभी हल्का दर्द होना सामान्य बात है लेकिन यदि किसी लड़की को पीरियड्स के दौरान अत्यधिक तेज दर्द की शिकायत है तो ऐसे में इस समस्या को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।
पीरियड्स में पेट के दर्द से छुटकारा पाने के लिए गर्म पानी से सिकाई की जा सकती है। यह नुस्ख़ा पुराने समय से चला आ रहा है लेकिन हम आपको डॉक्टर के परामर्श के बाद ऐसा करने का सुझाव देंगे।
3.) अनियंत्रित भावनाएं
कई महिलाओं को पीरियड्स के पहले या पीरियड्स के बाद मूड स्विंग का सामना करना पड़ता है। कुछ महिलाओं को पीरियड्स के दौरान भी मूड स्विंग होते हैं। महिलाएँ अत्यधिक चिड़चिड़ापन व तनाव का भी सामना करती हैं।
पीरियड्स के दौरान एक महिला के शरीर में हार्मोनल बदलाव होते हैं जिसकी वजह से मूड स्विंग की स्थिति सामने आती है। मूड को रिलैक्स करने के लिए महिलाएँ म्यूज़िक सुन सकती हैं। इसी के साथ साथ चिड़चिड़ापन कम करने के लिए स्वस्थ आहार का सेवन करें।
4.) पाचन संबंधी समस्याएँ
पीरियड्स के दौरान महिलाओं को पाचन संबंधी समस्याएं भी हो जाती हैं जैसे उल्टी, दस्त और क़ब्ज़।
कुछ महिलाओं को पीरियड्स के दौरान पेट ख़राब या दस्त होने की शिकायत होती है तो वहीं कुछ महिलाओं को क़ब्ज की समस्या हो जाती है।
हार्मोनल बदलाव के चलते पाचन संबंधी समस्याएं भी देखने को मिल सकती हैं। इस समस्या के लिए सबसे उत्तम निदान अच्छे आहार का सेवन है।
महिलाओं को इस बात का ख़ास ख्याल रखना चाहिए कि वे पीरियड्स के दौरान अत्यधिक मसालेदार तथा ऑयली भोजन का सेवन ना करें। इसी के साथ साथ पर्याप्त जल का सेवन करें।
5.) अनियमित पीरियड्स
एक स्वस्थ पीरियड्स का चक्र 28 दिन का माना जाता है। यह चक्र 26-28 दिन का भी हो सकता है। कभी कभी पीरियड्स 28 दिन से अधिक या जल्दी हो जाते हैं।
वर्ष में एक दो बार ऐसा होना सामान्य है लेकिन यदि किसी महिला को लगातार अनियमित पीरियड्स की शिकायत हो रही है तो ऐसे में डॉक्टर के पास जाना ज़रूरी है।
अनियमित पीरियड्स का कारण हार्मोनल, बदलाव, यूटरस में गांठ, अनियमित आहार तथा मानसिक तनाव आदि हो सकते हैं।
अनियमित पीरियड्स से बचने के लिए अपने मानसिक स्वास्थ्य का ख़याल रखें। डॉक्टर से परामर्श लें तथा उसी के अनुसार दवाइयों का सेवन करें। अपने आहार को संतुलित रखें।
गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याएं, उनके कारण और निदान के विषय में
1.) एनीमिया
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के शरीर में खून की कमी की समस्या हो जाती है।
इसे एनीमिया के नाम से जाना जाता है। एनीमिया का वास्तविक कारण शरीर में आयरन की कमी होना है। इसी के साथ एनिमिया के लिए सही खानपान का अभाव भी ज़िम्मेदार है। गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला को पोषणयुक्त आहार प्रदान करें।
2.) हाथ पैरों में दर्द या सूजन
गर्भावस्था के दौरान अत्यधिक शारीरिक परिश्रम करने से हाथ पैरों में दर्द और सूजन की समस्या हो जाती है। इस समस्या से बचाव के लिए गर्भवती महिला को सिर्फ़ उतना ही शारीरिक परिश्रम करना चाहिए जितना स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। गर्भवती महिला को अत्यधिक भारयुक्त चीज़ों को उठाने से बचना चाहिए। इसी के साथ साथ गर्भवती महिला को पर्याप्त नींद लेनी चाहिए और आराम करना चाहिए।
3.) प्री एक्लेमप्सिया
गर्भावस्था के शुरुआती तीन महीने किसी भी गर्भवती महिला के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं। यह गर्भस्थ शिशु के विकास का सबसे प्रथम चरण होता है। इस समयावधि में गर्भवती महिला को बीपी बढ़ने की समस्या हो सकती है। ऐसे में गर्भवती महिला के शरीर में मौजूद प्रोटीन मूत्र के साथ शरीर से बाहर निकलने लगता है।
इस समस्या को प्री एक्लेमप्सिया कहते हैं। इस समस्या के कारण महिला के हाथ पैरों में दर्द होता है तथा गर्भस्थ शिशु के विकास पर भी असर पड़ता है। इस समस्या से बचने के लिए डॉक्टर से रेगुलर चेकअप कराएं।
4.) डायबिटीज़
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को अपने खानपान का विशेष ख़याल रखना चाहिए। ऐसा आहार ग्रहण करें जिसमें पोषक तत्वों की पर्याप्त मात्रा मौजूद हो। जिन महिलाओं को डायबिटीज़ की समस्या है उन्हें गर्भावस्था के दौरान अपना विशेष ख़याल रखना चाहिए। डायबिटीज़ से पीड़ित गर्भवती महिलाओं को जंकफूड, चावल, आलू, मसालेदार चीज़ें तथा मीठी चीज़ों के सेवन से बचना चाहिए।
महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होना बेहद ज़रूरी है। पीरियड्स शुरू होने से लेकर शिशुओं के जन्म तक, लड़की को अपने जीवन में बहुत से उतार चढ़ाव देखने को मिलते हैं। इन्हीं के साथ साथ लड़कियाँ कई समस्याओं से भी रूबरू होती हैं। इसलिए लड़कियों और महिलाओं को अपने स्वास्थ्य का विशेष ख़याल रखना आवश्यक है।
इस लेख के माध्यम से हमने पीरियड्स और गर्भावस्था से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण बातों की चर्चा की है। आप अपने सवालों और सुझावों को कॉमेंट बॉक्स में लिखकर हमसे शेयर कर सकते हैं।